Sunday, August 19, 2007

आवाज़

भरे-भरे से रात दिन किसी की आवाज़ से...

पुकारूँ तो भी छलक जाए
पर दूर से कुछ भी नज़र ना आए...
पास जाऊँ तो सुनूँ उसके राज़,
बाँध कर ले आऊँ साथ अपने उसकी आवाज़,
कि तनहा हैं रात-दिन ना जाने किस हिसाब से,
भरे-भरे से रात दिन किसी की आवाज़ से...

अगर है तनहाई मुकाद्दर तो सीने से लगा लूँ,
है जशन सन्नाटा, सबको बता दूँ
कौन है साथ किसके,यह पूछो जनाब से,
भरे-भरे से रात दिन किसी की आवाज़ से...

वो थे दूर तो दिल में दर्द हुआ,
वो आए पास तो दिल ही ना हुआ...
रह गए बस कुछ लम्हे खराब से,
भरे-भरे से रात दिन किसी की आवाज़ से...

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