Monday, August 20, 2007

गुरू इश्क तेरा

(dedicated to H. H. Sri Sri Ravi Shankar)

गुरु
इश्क तेरा खुद में बेमिसाल है,
यह जो रंगत है चेहरे पर मेरी, वो तेरा ही कमाल है...

जो देखता है वाह-वाह करता है,
जो सुनता है कहता है तू आतिश है, धमाल है,
यह जो रंगत है चेहरे पर मेरी, वो तेरा ही कमाल है...

खुश हूँ मुसीबतों में, मेहफूस हूँ मुश्किलों में,
कोई कहता है दीवाना मुझको,में कहता हूँ तेरे इश्क का मयाल है,
यह जो रंगत है चेहरे पर मेरी, वो तेरा ही कमाल है...

मरता है 'सवीन' तुझ पर, तुझ पर सब निसार है,
अब आ के देख ले तू खुद ही तूने किया जो कमाल है,
यह जो रंगत है चेहरे पर मेरी, वो तेरा ही कमाल है...

2 comments:

उन्मुक्त said...

अच्छी कविता है। हिन्दी में ही क्यों नहीं लिखते।

Saveen said...

Hi Unmukt and welcome to this space :). Glad you liked the poem. Why dont I write in Hindi only? hmmmm.. I really dont have an answer to this. I am equally comfortable with both Hindi and English. I can dream in both these languages. I guess thats why I use them both.